● बूढ़ातालाब -
रायपुर का बूढ़ातालाब १३वी शताब्दी में राजा रायसिंह जगत द्वारा खुदवाया गया था। गोंडवाना साहित्यों में उल्लेख मिलता हैं कि राजा रायसिंह जगत अपनी सेना लेकर चांदा राज्य होते हुए तथा लांजी राज्य से बढे और अपने लश्कर को खारून नदी के कछार में डाला। आगे बढ़ने के लिए पुरैना, टिकरापारा में एक विशालतम तालाब खुदवाया। इस ताल को उनके साथ चलने वाले स्त्री-पुरुषों ने 12 एकड़ भूमि को 6 महीने में 3 हजार पुरुष एवम् 4 हजार स्त्रियों ने खोदा था। हाथी, बैल आदि पशुओं को भी खुदाई के कार्य हेतु उपयोग में लाया गया। उन्होंने इसका नामकरण अपने इष्टदेव "बूढ़ादेव" के नाम से बूढ़ातालाब किया था। राजा रायसिंह इसी के पास नगर बसाया जिसका नाम "रयपुर" था, जो अंग्रेजों के समय "रायपुर" हो गया। उन्होंने यहाँ और भी अनेक तालाब बनवाए गए थे।
● *राजकुमार कालेज -*
छत्तीसगढ़ में गोंडवाना के राजे, जमीदार और प्रजा ने अपने समाज में शिक्षा, साहित्य के विकास एवं प्रचार हेतु 1880 ई० में राजकुमार कालेज जबलपुर में खोला था। उसे 1882 में गोंडवाना के राजाओं द्वारा 500 एकड़ जमीन दान देकर रायपुर में स्थापित कराया गया। यह कालेज अभी भी छत्तीसगढ़ में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहा हैं। विश्व के सबसे बड़े और वजनी संगीत ग्रंथ "तालतोय निधि" के रचयिता रायगढ़ के आदिवासी राजकुमार चक्रधर सिंह पोर्ते तथा अनेक राजकुमारों ने इसी संस्था से विद्या अर्जित किया है।
● *जवाहर बाजार* का विशाल द्वार -
राजधानी, रायपुर के जय स्तम्भ चौक से कोतवाली की और जाने वाली मुख्य मार्ग पर जवाहर बाजार का विशाल द्वार दिखाई देता हैं। ब्रिटिश सरकार के पॉलिटिकल एजेंट के रायपुर में रहने के कारण यहाँ के राजा, जमीदार, पटेल और महाजनों को हमेशा सरकारी कामकाज से रायपुर आना पड़ता था, दूर-दूर से आने के कारण उन्हें रायपुर में रुकने के लिए असुविधा होती थी। इसलिए वे सब यहीं बाड़ा बनाकर रहते थे। यहाँ अपनी जरूरत की वस्तुओं का क्रय किया जाता था। उस समय का यह विशाल बाजार गोंडवाना के राजाओं ने सारंगढ के राजा जवाहर सिंह के नाम से बनवाया था।
● टाउनहाल-
*कलेक्ट्रेट स्थित टाउन हाल सन 1920 में छत्तीसगढ़ के गोंड राजे, जमीदार, मुकद्दम, मालगुजार, महाजनों ने सभा, सगा समाज के सम्मेलन आदि के लिए रायपुर शहर बस जाने के बाद बनवाया था, जिसमे पूरे छत्तीसगढ़ के मुखिया लोग बैठक और सामाजिक सभा सम्मेलन किया कहते थे। आज भी इसका उपयोग इन्ही कार्यों के लिए किया जाता है। (सम्पादित)छत्तीसगढ़ में अन्य क्षेत्रों से ईतर आदिवासियों की सत्ता सुदृढ़ रही है। सोनाखान, फिंगेश्वर, छुरा, सुवरमाल गढ़, कोमाखान, रायगढ़, सारंगढ़, गढ़ मण्डला, रायपुर आदि रियासतों का स्वर्णिम इतिहास यह सब बयान करता है। पर दुखद और विचित्र बात है कि हमारे यहाँ इन गौरवशाली आदिवासी प्रतीकों को बाह्य आवरण ने इन्हें अपने मूल से दूर कर दिया है।
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